First self written content in Hindi
I tried converting one of my poems to Song or Ghazal form
ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में
पास वोह आए हम मुसकाए
अब कोई गम न हमें सताए
कितनी सादा हो गयी ज़िंदगी
उनको मीत बनाने से
ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में
मेहबूब ही है अब खुदा हमारा
उसके बिन जीना नहीं गवारा
काम को हाथ लगाएंगे अब
उनके वापस आने में
ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में
फूल सुगन्ध का रिश्ता है येह
गम और खुशीआं दोनों ही दे
फूल खिला तो सुगंध मिलेगी
मिलेगी राख जलाने से
ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में
-- अमरीक खाबड़ा
बर्फ़ का जमा हुआ टुकड़ा
मैं देर से जमा हुआ बर्फ का टुकड़ा
कब से सात डिगरी तापमान
होने का इंतज़ार कर रहा था
अभी मुझे पिघलना है
फिर रास्ता खोजते खोजते
हज़ारों किलोमीटर चलते चलते
नदिओं झरनो से होते हुए
समुन्दर में जा मिलना है
उस के बाद भी चैन से कहाँ बैठूंगा
फिर से evaporate होकर
चल दूंगा किसे प्यासे की तरफ़
नहीं गया तो उस का भगवान से
भरोसा उठ जायेगा।
--- Amrik Khabra
किसी मज़बूरी में मुझे ख़त मत लिखना
किसी मज़बूरी में मुझे ख़त मत लिखना – हाँ
दिल अगर चाहे तो दिल खोहल कर लिखना
बाँट होकर हिस्सों में जीया ना जाएगा
जो भी लिखना दीवारें तोड़ कर लिखना
बातचीत टूटने से टूट जाएँ रिश्ते
अगर कोई शिकवा है बोल कर लिखना
विचारों से सहमत होना अलग बात है
मेरे कया गुनाह पूरा तोल कर लिखना
ग़लती कया हुई यह तो बता दो
जनमो का लेखा फरोल के लिखना
मेरी कविता तो साफ़ और सरल है
तुम्हें कया दुःख है दिल फ़ोल कर लिखना
दुसरे के हालात तो उसी को पता होते हैं
तुम्हारे कया हालात हैं हस बोल कर लिखना
जो भी लिखा है महसूस भी कीया मैने
तुम भी पूरा अडोल हो कर लिखना
अमरीक तो इतना सीधा इनसान है
अनजाने में क्या कर बैठा ज़रा बोल के लिखना
— Amrik Khabra
दोसती कितनी गहरी है आप जानो
खुद को खुश करने के लिए
दूसरे को दुःख देना अच्छी बात थोड़े है।
ज्ञान को रौशनी में सभी में एक जोत दिखेगी
भगवान सिर्फ एक में है यह कोई रात थोड़े है।
उपलभ्दीओं के लिए दोसतों को ही छोड़ दें
फिर तो अभी रात में जीअ रहे हैं प्रभात थोड़े है।
जिस को पाने से उदासी ख़ुशी ना बन जाए
वोह पदारथ होगा सौगात थोड़ी है।
रोक रखे थे सालों से दिन रात के पहिये
अपनी छाती पर यह कोई आसान बात थोड़े है।
दोसती कितनी गहरी है आप जानो
हमारे लिए कोई टाइम पास थोड़े है
-- Amrik Khabra
वोही दर्द दीया है ज़माने ने
फिर से वोही दर्द दीया है ज़माने ने
मुसकुराने से मेरे उन्हें इतराज़ कयों
कितना मज़ा आ रहा था मुसकुराने में
नापते हैँ दोसती और प्यार को
देखो राजनीती के पैमाने से
खुदा मिले ना जीते हुए इनसान में
रखा कया है तीरथ पर नहाने में
मिले ना जो राज गद्दी पर बैठ के
वोह मज़ा है दिल पे चोट खाने में
पास आने से सकून मिला था जो
छिन गया वोह फिर से दूर जाने में
खिले जो फूल मिलेगी सुगन्ध तो
राख ही मिलेगी पर जलाने में
गलती हुई रुला दिए जी आप को
पर मज़ा आएगा अब हसाने में
--- Amrik Khabra
लगा रहा हूँ बिखरे सुरों को तरतीब में
लगा रहा हूँ बिखरे सुरों को तरतीब में
जो बन सके गीत कोई।
ज़िन्दगी के लम्हो को खराब नहीं करूंगा
ढूंढ ही लूँगा जीने की प्रीत कोई।
गिरा देंगे भिभाजन की दीवारें
चला देंगे नई रीत कोई।
मन मन्दिर में तसवीर है कोई
मिल ही जाएगा मीत कोई।
हार जाऊं मैं तो गम ना होगा
मुझ से बिहतर जाए अगर जीत कोई।
कोशिश तो कर अमरीक साज़ तो छेड़
बनेगा किसी दिन आखिर तो संगीत कोई।
— Amrik Khabra
Random thoughts
उम्र कुछ इस तरह से गुज़र रही है
तेरी आवाज़ , तेरे दीदार को तरसे हैं
हम वोह बादल हैं, जो यादों में ही बरसे हैं
मिलने का वादा ही तो नहीं कीया उन्होंने
कितनी वार हम निकले घर से हैं
*****
ज़िन्दगी कमबख्त जीने कहाँ देती है
ना अम्रित ना ज़हर कुछ पीने कहाँ देती है
-- Amrik Birhada
शुरू करेँ नई रीत कोई
चल दोसत शुरू करेँ नई रीत कोई
कायम कर दें मधुर सी प्रीत कोई
सुबह उठते ही उनकी याद हो
बाकी के सारे काम उसके बाद हों
हिम्मंत दोनों को मिलेगी इस रिश्ते से
सथापित कर दिए मन मंदिर में मीत कोई
मिलना नसीब हो जा पड़े दूर रहना
ख़यालों में हम साथ साथ है यही कहना
जब भी सुनें आतमा को आराम मिले
चुन कर और रट लो ऐसा गीत कोई
मुशकिलों से डरना मत दोसत
खुद पर सदा विशवास रखना
लगाते रहना सुरों को तरतीब में
बन ही जाएगा एक दिन संगीत कोई
-- Amrik Birhada
अब प्यार को भी परभाषित करें
आधी से जयादा उम्र बीत गई
प्यार को प्रभाषित करने में
वोह कहते हैं प्यार वोह है
जो सिर्फ एक से ही किया जाए
पर मेरा सवाल है वोह प्यार ही क्या
जो सबसे प्यार करना न सिखाए
हाँ यह बात तो है जो सभसे प्यारा है
एक ही है , एक ही रहेगा बाकी की ज़िन्दगी
जिसको रोज़ याद करता हूँ
जो है मेरा हमहाल देवता
जो दूर रहकर भी जीना सिखाता है
गिरने के बाद उठना सिखाता है,
मुस्कुराना सिखाता है, लिखना सिखाता है ,
गाना सिखाता है
वोह कौन है , यह जानना सभ को जरूरी थोड़े
मुझे पता है , उससे पता है
मैने उससे बता दिए था
दूरी इसमें कोई खलल ही नहीं
वोह एक आध्यात्मिक डोर से जुड़ा हुआ है
हर वक़्त साथ है
हवा की तरह खुशबु की तरह
-- अमरीक बिरहडा
कैसा ज़माना आया है
देखो कैसा ज़माना आया है
प्यार दी इक्क बूँद को तरसाया है
प्यार आतमा का गहना होता है
शरीर सूंदर है पर प्यार बिन मुरझाया है
योगदान शरीर का अवश्य है प्यार परगट करने में
परन्तु प्यार बिना शरीर सिर्फ बर्तन है जा माया है
प्यार अगर दिल में हो असल आकर्षण वोही
शरीर को जो आकर्शित करे वोह सरमाया है
चार पल पास बैठ कर बात ही कर लेते
दिल तो तेरे प्यार का त्रिहाया (प्यासा ) है
लिखना बहुत अवश्य था इस गीत को
बाजार में हिट नहीं होगा पता है मुझे
यह किसी मशहूर हस्ती ने नहीं
मेरे दिल ने गाया है
चलो छोडो इस को पड़ कर मुसकुरा देना
तेरी दी हुयी मुस्कुराहटें अभी बहुत बकाया (Remaining ) है
झल्ला है अमरीक जो छोड़ कमाई को
ऐसे ही पंनो पर पैन घिसाया है
--- अमरीक बिरहडा
Random thoughts
प्यारे दोसत गम ना करना
मैं मिलूंगा जरूर
आज नहीं तो हफ़ते में, महीने में जा साल में
जा फिर अगले जहान में
खयालों में , सपनों में या यादों में
जा फिर रोज़ की फरियादों में
मिलूंगा जरूर मिलूंगा जरूर
- A Birhada
उम्र भर जिसने दर्द हँढ़ाए हों
किसी और को दर्द क्या देगा
दुनिआ ने उसे सताया होगा
इसी कारण दूर रहा होगा
--- Amrik Khabra
खुदा बन जाओ जा बनो तुम काली
इतना सा भी मिले जीने को काफी है
और मिले तो आपकी इनायत होगी।
कुछ पल बैठ के बात करो तो मिहरवानी
ना भी कर पाओ तो ना शिकायत होगी।
खुदा बन जाओ जा बनो तुम काली
दर से तेरे नहीं जाऊंगा खाली।
दम छोड़ दूंगा तेरा दर नहीं छोडूंगा
इंसानियत पे बना हुआ भरोसा नहीं तोडूंगा।
-- अमरीक बिरहडा
जाने तुम्हे कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ।
ज़मीं पे ढूंढता हूँ आसमां पे ढूढ़ता हूँ
चारों दिशाओं में जाता हूँ मैं
तुम्हे मैं पूरे जहाँ में ढूढ़ता हूँ।
चाँद पे जाता हूँ , मंगल पे जाता हूँ
जाने तुम्हे कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ।
सरदी हो तो धुप में ढूढंता हूँ
गर्मी हो तो जाकर छाँव में ढूढंता हूँ।
बैठे हो तुम मेरे दिल में बस कर
जाने तुम्हे क्यों जहाँ वहाँ ढूढंता हूँ।
--- अमरीक बिरहड़ा
मत होना तुम कभी उदास
मत होना तुम कभी उदास
दूरं है बैठे तो क्या हुआ
रूह तो हमेशा है तेरे पास।
याद करें तो सभ दुःख भूलें
रिश्ता है कोई यह ख़ास।
जपती रहती नाम तुम्हारा
देखो आती जाती साँस।
पता तो है ना प्यार है कितना
कभी तो मिलेंगे रखना आस।
बच्चों में भगवान देखना
कुछ नहीं है वड़ों के पास।
----- बिरहड़ा
बिन तेरे नहीं गुज़ारा
गल सुण मेरे यारा
बिन तेरे नहीं गुज़ारा।
बताता क्यों नहीं तू है कहाँ
देख पुकारूँ मैं जहां।
मेरे पास तू आता क्यों नहीं
मुझ को गले लगाता क्यों नहीं।
देख तेरा इंतज़ार है
करना मुझे दीदार है।
तू कहाँ है मुझे पता क्यों नहीं
देता तू बता क्यों नहीं।
आजा मेरे यार तू
जा फिर मुझे पुकार तू।
चला अभी मैं आऊंगा
तुम को नहीं सताऊंगा।
मान जाओ अब हार है
तेरा ही इंतज़ार है।
-- अमरीक खाबड़ा
एक फूल का वरनण (व्याखयान )
एक फूल का वरनण (व्याखयान )
अलग अलग भाषाओँ में कीया
फूल का रूप और सुगन्ध वोही रही
हाथी को चींटी लिख दीया
परन्तु हाथी का कद छोटा ना हुआ
फिर चींटी की हाथी लिख दीया
चींटी का कद ना वड़ा
पानी को पथर लिख दीया
पानी सभ की प्यास भुजाता रहा
और झरने,नदी बन वहता रहा
फिर हवा को पहाड़ लिख दीया
परन्तु हवा रूमक्ती रही ,चलती रही
मैं सोच में पड़ गया
फिर कुदरत कौन सी भाषा बोलती है
शब्दों के पार अर्थ ढूढ़ने लगा
"कुदरत के सभ बन्दे " इसके अर्थ ढूढ़ने लगा
--- Amrik Khabra
दो कविताएं तेरे संग
मेरा दोस्त वड़ा निराला है
बड़ा प्यारा भोला भाला है
वोह दूर बैठ के कहता है
आने वाला पल जाने वाला है।
भाषा कोई नई सिखाता है
हमे कुछ समझ ना आता है
आँखों से वोह बातें करता है
ज़ुबान पर उसकी ताला है।
क्या शक्ती उसकी यादों में
शब्दों में हम क्या करें बयान
मुर्दा की जीवित कीया है
जीवित को मार डाला है।
जब जब वोह मुसकाता है
फिर जीने को मन करता है
ताजुब है मुस्कान में उसकी
इतना क्यों उजाला है।
—- अमरीक बिरहडा
लाला जी लाला जी
कैसे हैं गोपाला जी
गुस्सा अपना छोड़ दीजिए
कर दीजिए थोड़ा उजाला जी
आईए बैठ परवार के साथ
पीजिए चाय का प्याला जी।
क्योँ करते हो इतना सन्देह
सीधे साधे बन्दे पर
साफ़ हूँ दिल से history देखो
कोई ना कीया घोटाला जी
कयों पूजें पथर की मूर्त
इनसान में रब्ब है अगर
जीते जागते धड़कते दिल में
बना दें नया शिवाला जी
शिवाला – शिव जी का मन्दिर
करते नहीं हैं लोग साफ़ बात आजकल
करते नहीं हैं लोग साफ़ बात आजकल
ना करें जल्दी से किसी को माफ़ आजकल।
प्यार तो दोनों एक दूजे से करते हैं
पर करते कहाँ है शब्दों में इज़हार आजकल
मिलने की जगह रख ली एक ने आकाश दुसरे ने पाताल
इसी लिए तो विछड़े है यार आजकल
ख़ुशी हो सामने रोक कहाँ पाते है
रोने के लिए काटें फिर प्याज आजकल
हमारी परीक्षा तो कितनी वार ली
एक गलती हम से हुई तो नाराज़ आजकल
वर्तमान में स्वास रखना
वर्तमान में स्वास रखना
लाख दीवारें हों रासते में
मिलने की आस रखना।
पाने की भूख से बिहतर होगा
कभी कभी मिलने की प्यास रखना।
रूह की बात शरीर से पहले हो
रिश्ता कुछ अैसा ख़ास रखना।
पास पास बैठे रहें जरूरी तो नहीं
तसवीर और याद अपने पास रखना।
मेरे ऊपर से उठ जाए कोई बात नहीं
अपने आप पर पूरा विष्वास रखना।
छोडो बातें यार क्या हुआ था क्या होगा
बस वर्तमान में अपने स्वास रखना।
Introducing Block Patterns
Re write मिलना चाहो आते क्यों नहीं
अपना समझ कर डांट लो बेशक
दुःख सुख हमसे बाँट लो बेशक
साँस लेता हूँ हवा हो तुम
मुझसे कब बोलो जुदा हो तुम
हसना रोना गले लगाकर
गले से तुम लगाते क्यों नहीं
मिलने को मन करता रोज़
रहती दिल को तेरी खोज
बसे हो दिल में धड़कन जैसे
सामने तुम पर आते क्यों नहीं
शरतें रखकर प्यार नहीं होता
स्कोचने वाला यार नहीं होता
पूरा रख लो आधा रख लो
फैसला कोई सुनाते क्यों नहीं
जाना हो तो जा सकते हो
कभी भी वापस आ सकते हो
चाहिए नहीं जो साथ हमारा
यादों से फिर जाते क्यों नहीं
तुम में हम में फरक क्या है
दूर रहने का तरक क्या है
हमने तुमको अपना माना
तुम हमको अपनाते क्यों नहीं
--- अमरीक बिरहड़ा
फूलों की हालत देख देख कर
फूलों की हालत देख देख कर
मन चाहता है पथर हो जाऊं
परन्तु पथर होना कोई हल्ल थोड़े है
स्थापित कर देंगे देवते की मूरती बनाकर
पूजा करेंगे कोई बात थोड़ा मानेंगे
जा फिर टिका देंगे
किसी भदर पुरष के रासते में
इससे अच्छा तो मिट्टी हो जाऊं
किसे गिरते seed को सभाल कर सीने में
फूल जा फलदार पैदा बनने में मदद करूँ
जा फिर बारिश बन बरस जाऊं
किसी मुरझाई हुई बनसपती पर
जा फिर सुगन्ध बन हवा में बिखर जाऊं
एक प्यारे से एहसास की तरह
जिसे सभ लोग महसूस कर पाएं
-- अमरीक खाबड़ा
तुम कहाँ पर हो
ज़मीं पर हो तुम जा आसमान पर हो
मुझे कुछ मालूम नहीं तुम कहाँ पर हो।
महसूस करना मुझे जब तक गीत ज़िन्दा हैं
अगर यह गीत ज़िन्दा हैं तो समझो प्रीत ज़िन्दा हैं।
जिस दिन गीत मर गए समझो मीत मर गए
मीत मर गए तो साज़ संगीत मर गए।
मिलना यह भी होता है कि ख़्याल मिलते रहें
बिना मिले भी रूहें सालों साल मिलती रहें।
कोई गम ना करना जो कभी शरीर ना मिल पाएं तो।
यकीं मत करना तुझे वोह भूल गया अगर कोई समझाये तो।
बस इसी में खुश रहना कि अभ भी गीत गाते हैं।
संगीत से ही हर दुखों सी जीत जाते हैं।
-- अमरीक खाबड़ा