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Hindi Poetry

First self written content in Hindi

I tried converting one of my poems to Song or Ghazal form
ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में

पास वोह आए हम मुसकाए
अब कोई गम न हमें सताए
कितनी सादा हो गयी ज़िंदगी
उनको मीत बनाने से

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में

मेहबूब ही है अब खुदा हमारा
उसके बिन जीना नहीं गवारा
काम को हाथ लगाएंगे अब
उनके वापस आने में

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में

फूल सुगन्ध का रिश्ता है येह
गम और खुशीआं दोनों ही दे
फूल खिला तो सुगंध मिलेगी
मिलेगी राख जलाने से

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है
कुछ पल साथ बिताने में
मिलती है जो ख़ुशी प्यार में
मिले न किसी खज़ाने में
-- अमरीक खाबड़ा

बर्फ़ का जमा हुआ टुकड़ा

किसी मज़बूरी में मुझे ख़त मत लिखना

किसी मज़बूरी में मुझे ख़त मत लिखना  – हाँ 

दिल अगर चाहे तो दिल खोहल कर  लिखना

      बाँट होकर हिस्सों में जीया ना जाएगा 

      जो भी लिखना दीवारें तोड़ कर लिखना 

बातचीत टूटने से टूट जाएँ रिश्ते 

अगर कोई शिकवा है बोल कर लिखना 

     विचारों से सहमत होना अलग बात है 

     मेरे कया गुनाह पूरा तोल  कर लिखना

ग़लती कया हुई यह तो बता दो 

जनमो का लेखा फरोल के लिखना 

     मेरी कविता तो साफ़ और सरल है 

     तुम्हें कया दुःख है  दिल फ़ोल कर  लिखना 

दुसरे के हालात तो उसी को पता होते हैं 

तुम्हारे कया हालात हैं हस बोल कर  लिखना 

     जो भी लिखा है महसूस भी कीया मैने 

     तुम भी पूरा अडोल हो  कर  लिखना

अमरीक तो इतना सीधा इनसान है 

अनजाने में क्या कर बैठा  ज़रा बोल के लिखना 

—  Amrik Khabra

दोसती कितनी गहरी है आप जानो

खुद  को खुश करने के लिए 
दूसरे को दुःख देना अच्छी बात थोड़े है।
ज्ञान को रौशनी में सभी में एक जोत दिखेगी
भगवान सिर्फ एक में है यह कोई रात थोड़े है।
उपलभ्दीओं के लिए दोसतों को ही छोड़ दें
फिर तो अभी रात में जीअ रहे हैं प्रभात थोड़े है।
जिस को पाने से उदासी ख़ुशी ना बन जाए
वोह पदारथ होगा सौगात थोड़ी है।
रोक रखे थे सालों से दिन रात के पहिये
अपनी छाती पर यह कोई आसान बात थोड़े है।
दोसती कितनी गहरी है आप जानो
हमारे लिए कोई टाइम पास थोड़े है
-- Amrik Khabra

लगा रहा हूँ बिखरे सुरों को तरतीब में

Random thoughts

उम्र कुछ इस तरह से गुज़र रही है 
तेरी आवाज़ , तेरे दीदार को तरसे हैं
हम वोह बादल हैं, जो यादों में ही बरसे हैं
मिलने का वादा ही तो नहीं कीया उन्होंने
कितनी वार हम निकले घर से हैं
*****
ज़िन्दगी कमबख्त जीने कहाँ देती है
ना अम्रित ना ज़हर कुछ पीने कहाँ देती है
-- Amrik Birhada

शुरू करेँ नई रीत कोई

चल दोसत शुरू करेँ नई रीत कोई
कायम कर दें मधुर सी प्रीत कोई
सुबह उठते ही उनकी याद हो
बाकी के सारे काम उसके बाद हों
हिम्मंत दोनों को मिलेगी इस रिश्ते से
सथापित कर दिए मन मंदिर में मीत कोई
मिलना नसीब हो जा पड़े दूर रहना
ख़यालों में हम साथ साथ है यही कहना
जब भी सुनें आतमा को आराम मिले
चुन कर और रट लो ऐसा गीत कोई
मुशकिलों से डरना मत दोसत
खुद पर सदा विशवास रखना
लगाते रहना सुरों को तरतीब में
बन ही जाएगा एक दिन संगीत कोई

-- Amrik Birhada

अब प्यार को भी परभाषित करें

आधी से जयादा उम्र बीत गई
प्यार को प्रभाषित करने में
वोह कहते हैं प्यार वोह है
जो सिर्फ एक से ही किया जाए
पर मेरा सवाल है वोह प्यार ही क्या
जो सबसे प्यार करना न सिखाए
हाँ यह बात तो है जो सभसे प्यारा है
एक ही है , एक ही रहेगा बाकी की ज़िन्दगी
जिसको रोज़ याद करता हूँ
जो है मेरा हमहाल देवता
जो दूर रहकर भी जीना सिखाता है
गिरने के बाद उठना सिखाता है,
मुस्कुराना सिखाता है, लिखना सिखाता है ,
गाना सिखाता है
वोह कौन है , यह जानना सभ को जरूरी थोड़े
मुझे पता है , उससे पता है
मैने उससे बता दिए था
दूरी इसमें कोई खलल ही नहीं
वोह एक आध्यात्मिक डोर से जुड़ा हुआ है
हर वक़्त साथ है
हवा की तरह खुशबु की तरह
-- अमरीक बिरहडा

कैसा ज़माना आया है

देखो कैसा ज़माना आया है
प्यार दी इक्क बूँद को तरसाया है
प्यार आतमा का गहना होता है
शरीर सूंदर है पर प्यार बिन मुरझाया है
योगदान शरीर का अवश्य है प्यार परगट करने में
परन्तु प्यार बिना शरीर सिर्फ बर्तन है जा माया है
प्यार अगर दिल में हो असल आकर्षण वोही
शरीर को जो आकर्शित करे वोह सरमाया है
चार पल पास बैठ कर बात ही कर लेते
दिल तो तेरे प्यार का त्रिहाया (प्यासा ) है
लिखना बहुत अवश्य था इस गीत को
बाजार में हिट नहीं होगा पता है मुझे
यह किसी मशहूर हस्ती ने नहीं
मेरे दिल ने गाया है
चलो छोडो इस को पड़ कर मुसकुरा देना
तेरी दी हुयी मुस्कुराहटें अभी बहुत बकाया (Remaining ) है
झल्ला है अमरीक जो छोड़ कमाई को
ऐसे ही पंनो पर पैन घिसाया है
--- अमरीक बिरहडा

Random thoughts

जाने तुम्हे कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ।

ज़मीं पे ढूंढता हूँ आसमां पे ढूढ़ता हूँ 
चारों दिशाओं में जाता हूँ मैं
तुम्हे मैं पूरे जहाँ में ढूढ़ता हूँ।
चाँद पे जाता हूँ , मंगल पे जाता हूँ
जाने तुम्हे कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ।
सरदी हो तो धुप में ढूढंता हूँ
गर्मी हो तो जाकर छाँव में ढूढंता हूँ।
बैठे हो तुम मेरे दिल में बस कर
जाने तुम्हे क्यों जहाँ वहाँ ढूढंता हूँ।
--- अमरीक बिरहड़ा

बिन तेरे नहीं गुज़ारा

गल सुण  मेरे यारा 
बिन तेरे नहीं गुज़ारा।
बताता क्यों नहीं तू है कहाँ
देख पुकारूँ मैं जहां।
मेरे पास तू आता क्यों नहीं
मुझ को गले लगाता क्यों नहीं।
देख तेरा इंतज़ार है
करना मुझे दीदार है।
तू कहाँ है मुझे पता क्यों नहीं
देता तू बता क्यों नहीं।
आजा मेरे यार तू
जा फिर मुझे पुकार तू।
चला अभी मैं आऊंगा
तुम को नहीं सताऊंगा।
मान जाओ अब हार है
तेरा ही इंतज़ार है।
-- अमरीक खाबड़ा

एक फूल का वरनण (व्याखयान )

एक फूल का वरनण (व्याखयान )
अलग अलग भाषाओँ में कीया
फूल का रूप और सुगन्ध वोही रही
हाथी को चींटी लिख दीया
परन्तु हाथी का कद छोटा ना हुआ
फिर चींटी की हाथी लिख दीया
चींटी का कद ना वड़ा
पानी को पथर लिख दीया
पानी सभ की प्यास भुजाता रहा
और झरने,नदी बन वहता रहा
फिर हवा को पहाड़ लिख दीया
परन्तु हवा रूमक्ती रही ,चलती रही
मैं सोच में पड़ गया
फिर कुदरत कौन सी भाषा बोलती है
शब्दों के पार अर्थ ढूढ़ने लगा
"कुदरत के सभ बन्दे " इसके अर्थ ढूढ़ने लगा

--- Amrik Khabra

दो कविताएं तेरे संग

मेरा दोस्त वड़ा निराला है

बड़ा प्यारा भोला भाला है

वोह दूर बैठ के कहता है

आने वाला पल जाने वाला है।

भाषा कोई नई सिखाता है

हमे कुछ समझ ना आता है

आँखों से वोह बातें करता है

ज़ुबान पर उसकी ताला है।

क्या शक्ती उसकी यादों में

शब्दों में हम क्या करें बयान

मुर्दा की जीवित कीया है

जीवित को मार डाला है।

जब जब वोह मुसकाता है

फिर जीने को मन करता है

ताजुब है मुस्कान में उसकी

इतना क्यों उजाला है।

—- अमरीक बिरहडा

लाला जी लाला जी 

कैसे हैं गोपाला जी 

गुस्सा अपना छोड़ दीजिए 

कर दीजिए थोड़ा उजाला जी 

आईए बैठ परवार के साथ 

पीजिए चाय का प्याला जी। 

क्योँ करते हो इतना सन्देह 

सीधे साधे बन्दे पर 

साफ़ हूँ दिल से history देखो 

कोई ना कीया घोटाला जी 

कयों पूजें पथर की मूर्त 

इनसान में रब्ब है अगर 

जीते जागते धड़कते दिल में 

बना दें नया शिवाला जी 

शिवाला – शिव जी का  मन्दिर

करते नहीं हैं लोग साफ़ बात आजकल

करते नहीं हैं लोग साफ़ बात आजकल 

ना करें जल्दी से किसी को माफ़ आजकल। 

      प्यार तो दोनों एक दूजे से करते हैं 

      पर करते कहाँ है शब्दों में इज़हार आजकल 

मिलने की जगह रख ली एक ने आकाश दुसरे ने पाताल 

इसी लिए तो विछड़े है यार आजकल 

       ख़ुशी हो  सामने  रोक कहाँ पाते है

       रोने के लिए काटें फिर प्याज आजकल 

हमारी परीक्षा तो कितनी वार ली 

एक गलती हम से हुई तो नाराज़ आजकल 

वर्तमान में स्वास रखना

वर्तमान में स्वास रखना 
लाख दीवारें हों रासते में
मिलने की आस रखना।
पाने की भूख से बिहतर होगा
कभी कभी मिलने की प्यास रखना।
रूह की बात शरीर से पहले हो
रिश्ता कुछ अैसा ख़ास रखना।
पास पास बैठे रहें जरूरी तो नहीं
तसवीर और याद अपने पास रखना।
मेरे ऊपर से उठ जाए कोई बात नहीं
अपने आप पर पूरा विष्वास रखना।
छोडो बातें यार क्या हुआ था क्या होगा
बस वर्तमान में अपने स्वास रखना।

Introducing Block Patterns

फूलों की हालत देख देख कर

फूलों की हालत देख देख कर 
मन चाहता है पथर हो जाऊं
परन्तु पथर होना कोई हल्ल थोड़े है
स्थापित कर देंगे देवते की मूरती बनाकर
पूजा करेंगे कोई बात थोड़ा मानेंगे
जा फिर टिका देंगे
किसी भदर पुरष के रासते में
इससे अच्छा तो मिट्टी हो जाऊं
किसे गिरते seed को सभाल कर सीने में
फूल जा फलदार पैदा बनने में मदद करूँ
जा फिर बारिश बन बरस जाऊं
किसी मुरझाई हुई बनसपती पर
जा फिर सुगन्ध बन हवा में बिखर जाऊं
एक प्यारे से एहसास की तरह
जिसे सभ लोग महसूस कर पाएं
-- अमरीक खाबड़ा

तुम कहाँ पर हो

ज़मीं पर हो तुम जा आसमान पर हो 
मुझे कुछ मालूम नहीं तुम कहाँ पर हो।
महसूस करना मुझे जब तक गीत ज़िन्दा हैं
अगर यह गीत ज़िन्दा हैं तो समझो प्रीत ज़िन्दा हैं।
जिस दिन गीत मर गए समझो मीत मर गए
मीत मर गए तो साज़ संगीत मर गए।
मिलना यह भी होता है कि ख़्याल मिलते रहें
बिना मिले भी रूहें सालों साल मिलती रहें।
कोई गम ना करना जो कभी शरीर ना मिल पाएं तो।
यकीं मत करना तुझे वोह भूल गया अगर कोई समझाये तो।
बस इसी में खुश रहना कि अभ भी गीत गाते हैं।
संगीत से ही हर दुखों सी जीत जाते हैं।
-- अमरीक खाबड़ा